नमस्ते मित्रों . . . .
मैं हैरान रह गई। मैं सोचने लगी की आज भी ऐसी ही सोच वाले लोग हैं जो रंग-रूप को ही मायने रखते हैं गुण नहीं।
लड़की गोरी होनी ,सुंदर होनी ,मोटी नहीं ,छोटी नहीं ,काली नहीं ,घर के सारे काम आते हों ,ज्यादा न बोलती हो ,ज्यादा न हँसती हो ,घर पर रहे ,सब की आज्ञा मानती हों ,बहस न करें ,बच्चों कि अच्छे से परवरिश करें ,पति को परमेश्वर माने उनकी आज्ञा सर आँखो पर रखे ,जैसे वो लड़की न होके रोबॉट हों। लड़की नहीं दासी चाहिये।
मैं जानती हूँ, मैं नाटी हूँ पर ये कोई कसूर नहीं। इस कमी के कारण कोई मेरा मन नहीं दुःखा सकता। मैं जैसी हूँ बढ़िया हूँ और खुश हूँ ,मुझें किसी के लिए अपने आप को बदलने कि जरूरत नहीं। खैर और कई रिश्ते आये गए और मन दुःखाये गये। . . .
फिर एक दिन वो भी आया. . . .
मैं बुआ के घर ही रहती थी, क्योंकि वही लड़कियों का कॉलेज था। कॉलेज जाते हुए अभी 1 या 2 ही महिने हुए थे। उस दिन 15 सितम्बर रविवार का दिन था हम सब घर पर ही थे। दो भाभियाँ ,दो भाई ,बुआ ,फूफा ,चार बच्चे और मेरी एक सहेली।
हम सभी बैठे थे, तभी दरवाजे के खटखटाने कि आवाज आई। बड़ी भाभी ने दरवाजा खोला ,देखा तो सामने मेरे पापा खड़े हैं याने उनके मामाससुर जी।
भाभी ने उन्हें प्रणाम किया ओरो को नमस्ते किया। पापा ने बताया की ये लड़की देखने आये हैं। पापा मम्मी के साथ मेरे दूर के जियाजी और एक लड़का जो उनका भाई हैं. मैं तो उसे नहीं देख पायी पर भाभियो और मेरी सहेलियों ने देखा। उन्होंने बताया की लड़का सुन्दर और मासूम सा लगता है।
मेरे मन मैं भी उसे देखने की इच्छा हुई पर शर्म के मारे देख न सकी ,जब तक बुलाये नहीं ,देख भी नहीं सकते, फिर इंतज़ार ही किया।
सब ने मिलकर खाना बनाया ,भाई और भाभियो ने मिलकर खिलाया।
फिर भाभियो ने मुझे उस कमरे में बुलाया जहाँ वो उस लड़के से बात कर रहे थे फिर. . . . . . . . .
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