. . . आखिर हमारी
सगाई हो गई वो ऐतिहासिक
दिन २ ऑक्टूबर का
था । फिर शुरू हुई
एक प्रेम कहानी = दो अजनबीयों
के जिंदगी भर साथ मिलकर
चलने की कहानी
अब उस समय आज जैसे मोबाईल
तो ज्यादा थे नहीं जो हम मोबाईल
पर बात करते
इसलिए पत्र व्यवहार शुरू हुआ
एक सप्ताह के दो
पत्र हमेशा आते थे ।
जब भी पत्र आता पापा के हाथ
ही लगता फिर वो उसे
फ्रिज के ऊपर रख देते।
''
दीनू '' ने मुझे करीब दो साल
तक हजार के करीब पत्र लिखे ।
दीनू मेरे मंगेतर से कब
दोस्त बन गए पता ही नहीं
चला
मैं भी दिल की सारी बाते
इनको बताने लगी , कुछ अच्छी कुछ
बुरी ,कभी रूठना
कभी मनाना पत्रों में
चलता रहा।
जब कभी मैं रूठ
जाती तो दीनू इतनी खूबसूरत तारीफ
करते की
मैं सारा ग़ुस्सा भूल
जाती ।
इन्हे कविताएँ लिखने का बहुत शौक
था कुछ लाइनें मैं लिखती हूँ
।
''' हुस्न की परी हो
तुम।
फूलों की कली हो
तुम ।।
इस जहान में ,
स्वर्ग की अप्सरा हो तुम।
तुम्हे याद
नहीं, हमारे दिल की मल्लिका हो
तुम।
फूलों में
गुलाब हो तुम ,
खुशबू में
मोगरा हो तुम।
चाँद की
चॉँदनी हो तुम , सूरज की किरण
हो तुम।
तुम्हे याद
नहीं , हमारे दिल की महारानी हो
तुम।
तुम्हारा
यह चंचल स्वरूप , मोतियों सा
चमकता
तुम्हारा रूप।
ऐसी कई कविताएँ हैं । जो इन्होने
मुझे लिखी आपको कल और
सुनाऊंगी ।
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