नमस्ते मित्रों
माँ . . . . .
जब एक रोटी के चार टुकड़े हो और खाने वाले पाँच ,
तब मुझे भूख नहीं ऐसा कहने वाली इंसान होती हैं " माँ "
माँ अब क्या कहे और क्या करे वो बेचारी तो खुद नहीं समझ पाती की बेटी को जन्म देके क्या गुनाह किया। खैर समय के साथ जमाना भी बदल गया। आज की लाड़ो को सभी बहुत प्यार करते हैं वह हर क्षैत्र में अपनी जगह बना चुकी हैं। ऐसा कोई काम नहीं जो बेटिया नहीं कर सकती और ये सभी शिक्षा के द्वारा सम्भव हो पाया हैं। शिक्षा ने समाज की सोच को कुछ हद तक बदल दिया हैं पर गाँव में तो अभी भी और प्रयास की आवश्कता बाकी हैं। फिर भी आज का जीवन नारी के लिए थोड़ा सरल व सहज हो गया हैं। चलो ये सब बाते तो सभी की हो गई,अब कुछ मेरी बाते करते हैं। क्योंकि मैं [ सोनिया ]
आप से अपने मन की बाते करना चाहती हूँ।
मैं एक गरीब परिवार से हूँ। हम तीन बहन - भाई हैं एक बड़ी बहन ,एक भाई और एक मैं [ सोनिया ] शुरू से ही पापा को कार्य मै कम ही रूचि थी ,माँ तो माँ हैं उसे तो अपने बच्चों का पालन करना ही था सौ वो पहले अपने खेत पर काम करती फिर दूसरो के खेत पर काम करने जाती। पहले मजदूरी का पैसा इतना कम था कि तीन बच्चो को पालना बहुत मुश्किल था,सौ बड़ी बहन का पालन सही से नहीं हो पाया। बड़ी दीदी जो 15 साल की थी वह कुपोषण का शिकार हों गई। बहुत से डॉक्टर को दिखाया पर कुछ नहीं हुआ और दीदी असमय काल का ग्रास बन गई। जब मैं करीब 5 साल की थी तो ज्यादा कुछ याद नहीं पर माँ ने तो अपना एक अंश खो दिया। वो आज भी दीदी को याद करके उस समय को कोसती हैं। .. . . . ... . .. . . फिर समय ऐसे ही अभाओ में गुजाता गया भाई और मैं सरकारी स्कूल में पढ़े। पापा को भी समय के साथ अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होने लगा और वो भी माँ के साथ मेहनत करने लगे। फिर हमारा भी समय बदल गया। । वैसे तो हमारे परीवार में बेटा ,बेटी में फर्क नहीं था पर पापा कुछ जगह संकोची हो जाते और ज्यादा कहि जाने -आने नहीं देते ,ज्यादा घूमना फिरना उन्हें पसंद नहीं था। जैसे- तैसे 12 वी पास की और एक अच्छा लड़का देखने की शुरूवात हुई ।
वहीं से ,जीवन में नया मोड़ आया । . . . . . . . .. .. ...
माँ . . . . .
जब एक रोटी के चार टुकड़े हो और खाने वाले पाँच ,
तब मुझे भूख नहीं ऐसा कहने वाली इंसान होती हैं " माँ "
माँ अब क्या कहे और क्या करे वो बेचारी तो खुद नहीं समझ पाती की बेटी को जन्म देके क्या गुनाह किया। खैर समय के साथ जमाना भी बदल गया। आज की लाड़ो को सभी बहुत प्यार करते हैं वह हर क्षैत्र में अपनी जगह बना चुकी हैं। ऐसा कोई काम नहीं जो बेटिया नहीं कर सकती और ये सभी शिक्षा के द्वारा सम्भव हो पाया हैं। शिक्षा ने समाज की सोच को कुछ हद तक बदल दिया हैं पर गाँव में तो अभी भी और प्रयास की आवश्कता बाकी हैं। फिर भी आज का जीवन नारी के लिए थोड़ा सरल व सहज हो गया हैं। चलो ये सब बाते तो सभी की हो गई,अब कुछ मेरी बाते करते हैं। क्योंकि मैं [ सोनिया ]
आप से अपने मन की बाते करना चाहती हूँ।
मैं एक गरीब परिवार से हूँ। हम तीन बहन - भाई हैं एक बड़ी बहन ,एक भाई और एक मैं [ सोनिया ] शुरू से ही पापा को कार्य मै कम ही रूचि थी ,माँ तो माँ हैं उसे तो अपने बच्चों का पालन करना ही था सौ वो पहले अपने खेत पर काम करती फिर दूसरो के खेत पर काम करने जाती। पहले मजदूरी का पैसा इतना कम था कि तीन बच्चो को पालना बहुत मुश्किल था,सौ बड़ी बहन का पालन सही से नहीं हो पाया। बड़ी दीदी जो 15 साल की थी वह कुपोषण का शिकार हों गई। बहुत से डॉक्टर को दिखाया पर कुछ नहीं हुआ और दीदी असमय काल का ग्रास बन गई। जब मैं करीब 5 साल की थी तो ज्यादा कुछ याद नहीं पर माँ ने तो अपना एक अंश खो दिया। वो आज भी दीदी को याद करके उस समय को कोसती हैं। .. . . . ... . .. . . फिर समय ऐसे ही अभाओ में गुजाता गया भाई और मैं सरकारी स्कूल में पढ़े। पापा को भी समय के साथ अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होने लगा और वो भी माँ के साथ मेहनत करने लगे। फिर हमारा भी समय बदल गया। । वैसे तो हमारे परीवार में बेटा ,बेटी में फर्क नहीं था पर पापा कुछ जगह संकोची हो जाते और ज्यादा कहि जाने -आने नहीं देते ,ज्यादा घूमना फिरना उन्हें पसंद नहीं था। जैसे- तैसे 12 वी पास की और एक अच्छा लड़का देखने की शुरूवात हुई ।
वहीं से ,जीवन में नया मोड़ आया । . . . . . . . .. .. ...
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